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Wednesday 10 June 2020



          आज में आपको इक ऐसे रहस्य के बारे मैं बताने जा रहा हु, जिसका जिक्र राम के काल से किया गया है . और जिसके बारे में लोगों का यह कहना है की वह रामायण काल में  'श्री रामचंद्र भगवान'  ने अपनी वानर सेना तथा निल और नल के साथ मिलकर वह इंजीनियरिंग स्ट्रक्चर(ब्रिज) बनाया है;  जो आज भी उसी स्थान स्थित है. पर थोड़ा धुंदला सा हो गया है . उस रहस्य मय इंजीनियरिंग स्ट्रक्चर(ब्रिज) का नांम है राम सेतु जिसे  एडम्स ब्रिज भी कहा जाता है .


राम सेतु

         राम सेतु यह अरेबियन समुन्दर के ऊपर बना  हुआ एक सेतु (ब्रिज) है. भारत के तमिलनाडु राज्य के       रामानंदपुराम जिले के रामेश्वरम गांव (पम्बन इसलैंड) तथा श्रीलंका के मन्नार जिले के मन्नार गांव 
(मन्नार इसलैंड)को यह राम सेतु (ब्रिज) जोड़ता है.

                    राम सेतु और उसकी सॅटॅलाइट पोजीशन (मैप लिंक के साथ )नीचे की इमेज में दिई है. 

राम सेतु

satellite image (ram setu)

                                                            











          हिन्दू धर्म के पौराणिक कथाओं के अनुसार यह सेतु (ब्रिज) भगवान राम ने सीता को छुड़ाने के लिए , लंका मे पहुचने के लिए बनाया था.  देखने वालो का कहना है की यहाँ पानी बहुत उथला है और हम आसानी से उसके(राम सेतु के)ऊपर से चल सकते है.

         वैज्ञानिकों का कहना है की यह पत्थर की कड़ा के ऊपर प्रवाल की बनी और कठिन हुई एक नैसर्गिक ब्रिज है जो की समुन्दर के जल में जलमग्न है.  जो बाद में समुन्दर की रेती से भुज गयी हो.  कुछ वैज्ञानिकों का कहना है की यहाँ की रेती ४००० साल पुराणी है जब की वहा के पत्थर ७००० साल पुराने है जिस बिच राम काल था तो शक्य है की यहाँ सेतु(ब्रिज )राम काल में ही राम ने वानर सेना के साथ मिलकर बनाया हो पर इसका कोई ऐतिहासिक सबूत अभीतक नहीं मिला है;  सिवाय की रामायण में उसका जिक्र किया गया है, और वो जिक्र आज भी सत्य परिस्थिति में देखने को मिल रहा है .

      रामायण में यह जिक्र है, के सेतु तैरती पत्थरोंसे बनाया था (जो की उसके ऊपर राम लिखने से तैरते रहे).  हैरानी की बात है के ऐसे तैरनेवाले  पत्थर रामेश्वरम के आस पास मौजूद है.  भूवैज्ञानिक के माने तो ऐसे पत्थर ज्वालामुखी के  उद्रेक के समय जब गैस युक्त लावा(Lava) और उसका झाग जमींन  के ऊपर आता है, तो वो तेजी से ठंडा होता है; जिससे पत्थर बनता है जिस मे कई सारे गैस के खाली छिद्र होते है .उसी पत्थर को प्यूमिस(Pumice) कहा जाता है .  उसमे  बहुत हवा से भरे छिद्र होने के कारन वो पानी के ऊपर तैर सकते  है, लेकिन वह छिद्र पानी से भर जाने के बाद क्या ? इतने दिनों में तो उस छिद्रो में पानी भरा ही होगा ;  तो वो कैसे तैरेंगे ? इसका जवाब नहीं  मिल पाया हे .

       खैर जो भी हो आज तक तो ये सब हमने कही न कही पढ़ा ही होगा पर हमेशा की तरह  हमें उसके आगे चलना है .

      मेरी भूशास्त्र (Geology) स्टडी से पता चलता  है की राम सेतु एक तम्बोलों (Tombolo) है.  तम्बोलों एक जियोलाजिकल स्ट्रक्चर है, जो की समुन्दर मे समुन्दर की रेती (Sand)  के डेपोज़िशन (निक्षेपन ) प्रोसेस से बनता है.  यह तम्बोलों  मुख्य महाद्वीप को और द्वीप को एक साथ जोडने वाला रेती का एक भरीव ब्रिज होता है.

Tombolo

   तम्बोलों (Tombolo)कैसे बनता है और राम सेतु कैसे बना ?



                समुन्दर की लहरेअपने साथ बहुत सारी रेती भी लाती है वह रेती समुन्दर के लहरोंकी गति तेज होने के कारन समुन्दर की पानी में तैरती रहती है , पर  लहरोंकी गति कम होने पर पानी उसे उठाये नहीं रख पाता और वो वही निक्षेपित  हो जाती है; जिसके कारन जहा लहरे गतिशून्य हो जाती है वही बीच (समुद्र तट),  स्पिट,तम्बोलों ,बार आदि रेती(Sand) के स्ट्रक्चर्स बन जाते है.
             जहा महाद्वीप और द्वीप पास मे हो वहां समुन्दर का तल उथला होता है.   जिसके कारन समुन्दर का पानी भी बहुत उथल हो जाता है.  तथा समुन्दर की लहरे  वहां समुन्दर उथल होने कारन मंद हो जाती है,  जिसके कारन समुन्दर ने लाई हुई रेती वहा निक्षेप (जमा) हो जाती है .  ऐसे कई  बरसो की समुन्दर  की रेती कि निक्षेप (जमा / Deposition) होने की प्रोसेस  से रेती का एक ब्रिज बन जाता है; जिसे तम्बोलों (Tombolo)कहते है.

        तम्बोलों (Tombolo) कैसे फॉर्म होता है ?  और राम सेतु कैसे फॉर्म हुआ ?  उसकी कुछ चित्र निचे दिए हुए है.  जिसमे  स्टेज  बाय स्टेज  उसका निर्माण कैसे होता है वह चित्रित किया है .


   तम्बोलों फॉर्म होने की 1 St Stage:- 
      पहले तो जो भी रेती लायी हुई हो वह समुन्दर किनारे पर लहरों की  पत्थरोंके साथ टकराव  होने से लहरो की गति खत्म होने लगती हैऔर रेती  निक्षेपित हो जाती है जिससे  'बीच'  (जो महाद्वीप तथा द्वीप दोनों के किनारो पे ) बनती है 
 राम सेतु  फॉर्म होने की 1 St Stage:-
     उसी तरह  पम्बन आइलैंड और मन्नार आइलैं  के समुन्दर किनारे पर लहरों की  पत्थरोंके साथ टकराव  होने से लहरो की गति खत्म होने लगी ; और जो भी रेती लायी हुई थी , वह रेती  निक्षेपित होकर पम्बन आइलैंड और मन्नार आइलैंड पे 'बीच' बने.
1St stage of formation

    

तम्बोलों फॉर्म होने की 2 nd Stage :- 

     बाद में वही निक्षेपित 'बीच' (जो महाद्वीप तथा द्वीप दोनों के किनारो पे बना  'बीच ' ) की रेती  समुन्दर मे लहरों की गति कम कर देती है और जैसे जैसे गति कम होती है,  महाद्वीप से द्वीप की ओर तथा द्वीप से महाद्वीप के ओर (एक दूसरे की तरफ) रेती एक लाइन में जमा होने लगती है .

                                             राम सेतु  फॉर्म होने की 2 nd Stage :-
               उसी तरह  बाद में वही निक्षेपित बीच (पम्बन आइलैंड और मन्नार आइलैंड के 'बीच' ) की रेती  समुन्दर मे लहरों की गति कम करने लगी; और जैसे जैसे गति कम होती गई  पम्बन आइलैंड से  मन्नार आइलैंड की ओर तथा  मन्नार आइलैंड से पम्बन आइलैंड के ओर (एक दूसरे की तरफ) रेती एक लाइन में जमा होने लगी.
2nd Stage of formation





तम्बोलों फॉर्म होने की 3 rd Stage :-

     वही रेती जमा होते होते एक लाइन में एक स्ट्रक्चर बना देती हे जो महाद्वीप और द्वीप को एक दुसरे से जोड़ता है .  उसी रेती के ब्रिज स्ट्रक्चर को ही तम्बोलों कहते हैं .

                                                   राम सेतु फॉर्म होने की 3 rd Stage :-
       वही जमा हुई रेती ने एक लाइन में एक स्ट्रक्चर बना दिया और पम्बनआइलैंड और मन्नार आइलैंड को एक दुसरे से जोड दिया. रेती के उसी स्ट्रक्चर के ऊपर , यानि तम्बोलों  के ऊपर पत्थर डालकर रामायण काल में  'श्री रामचंद्र भगवान' ने अपनी वानर सेना तथा निल और नल के साथ मिलकर सेतु बनाया  हो जिसे राम सेतु कहते है.  

3rd Stage of formation
            
              तो पूरी घटना देखी जाये तो,  मेरे हिसाब से जिस समय रामायण का काल था तब यह तम्बोलों पूरी तरह से तैयार  न हुआ था;  या वो तम्बोलों समुन्दर के पानी के स्तर के निचे उथली गहराई पे था;  जिसके कारन राम तथा वानर सेना को वह सेतु बनान पड़ा था.  लेकिन महत्व  की बात तो ये है के,  वो सेतु उन्होंने  वही बनाया  जहा पानी पहलेसे ही तम्बोलों  के कारन उथला हुआ था.  यानि राम तथा निल और नल और वानर सेना का उतना सखोल  समुद्र विज्ञानं का अभ्यास था;  जिसके कारन उन्होंने वही ठिकान सेतु के लिए चुना. और सेतु उसके ऊपर से पत्थर डालकर बनाया. और श्रीलंका तक पहुंचे.




रहा सवाल  'वह सेतु धुंदला या टुटा फूटा क्यों दिखाई देता है'?  


उत्तर है :-
         आज जो तम्बोलों  दिखाई देता है वह टुटा  फूटा दिखाई पड़ता है ; क्योंकि तम्बोलों  पूरी तरह तैयार होने के बाद फिर से समुन्दर कि लहरे वातावरण बदलने के कारन तथा हवा के तेज बहने  के कारन तम्बोलों की रेती लहरों की तेज बहाव के दिशा मे बिखरने लगी , और  निचे की  satelite   इमेज में जैसा  धुंदला (टुटा  फूटा) सेतु  है वैसे दिखने लगा है .  जिसकी प्रक्रिया निचे दिए इमेज से स्पष्ट हो जाएगी.

satelite  image 
               यह नैसर्गिक पुनर्चक्रीत प्रक्रिया है .  निसर्ग का नियम ही है की 'जो भी चीज हो वो नए से बनती है फिर टूट जाती है फिर नए से बनती है फिर टूट जाती है' (हम उसे नेचर का अपने खुद की बैलेंसिंग का साइकिलिंग का नियम बोल सकते है).  हालखी  उसकी जगह और समय निश्चित नहीं होती .



यह मेरा साइंटिफिक अनुमान है 



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